August 17, 2007

बूंदों से गुफ्तगू


बूंदों से मिलती आंखें
खारी बूँदें, मीठी बूँदें
सर को झटको तो
बिखर जाती है बूँदें
हथेली पे थाम लो
नही तो भाग चली बूँदें

कल की बारिश में
बूँदें मिलने आयीं थीं
हँसते हँसते कुछ बातें की
फिर भर आयी आंखें
हाथों को फैला
बारिश के गले लग के
मैंने अपने दिल को छुआ था

बूंदों की आंख मिचौली में
गीला मन सूख चला था
पलकों पे ठहरी एक बूँद में
एक नया जहाँ देखा था
चंचल सा एक जहाँ
नाचा था उस बूँद में

बूँदें अपने साथ
कुछ यादें लाई थीं
कुछ कोने में पडी हुई
कुछ भूली बिसरीं
कुछ की धूल धो कर
फिर नयी सी बना कर

पर बूँदें तो शैतान होती हैं
खेल खेल में छू जाती हैं
तन से लिपट
मन को ठण्डा कर जाती हैं

कल फिर बारिश होगी
कल फिर बूंदों से बातें होंगी

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don't know why i write something almost every time i get wet in the rains - which i do almost every time i can [:P]

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