दिन की चकाचौंध से
आँखें थक गई हैं
थोडी से शाम हो कभी
तो हम सुस्ता लें थोड़ा
..अल्पविराम..
बातों के जंगल में
थोड़े फूल सहेज लें
इस शोर के सागर से
यादों के मोती चुन लें
..अल्पविराम..
अपने रिश्तों को
ठहर कर देख सकें
गले लग किसी अपने के
खुशी के आंसू बहा लें
..अल्पविराम..
जाने किस किस काम से
गैरों से मिलते हैं रोजाना
कभी ठिठक कर थोड़ा
ख़ुद से भी मिल लें
..अल्पविराम..
आँखें थक गई हैं
थोडी से शाम हो कभी
तो हम सुस्ता लें थोड़ा
..अल्पविराम..
बातों के जंगल में
थोड़े फूल सहेज लें
इस शोर के सागर से
यादों के मोती चुन लें
..अल्पविराम..
अपने रिश्तों को
ठहर कर देख सकें
गले लग किसी अपने के
खुशी के आंसू बहा लें
..अल्पविराम..
जाने किस किस काम से
गैरों से मिलते हैं रोजाना
कभी ठिठक कर थोड़ा
ख़ुद से भी मिल लें
..अल्पविराम..
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