October 16, 2012

missive misgiving :)


बंद लिफाफों को हाथों में ले
थोडा घबरा सा जाते हैं हम 
अन्दर शब्द हैं, भारी हैं 
क्या इन्हें समझ सकेंगे हम 

भारी हैं शैतान मुस्कानों से
जो लिखते हुए होठों पे आये थे 
भारी है मासूम सवालों से 
जो बस आँखों में घिर आये थे 

तुम्हारे होने का एहसास कराते शब्द 
तुम्हारे न होने से बडे  भारी हैं 
ये सोच के की पढ़ कर तुम याद आओगे
अनखुले लिफाफों में रात गुजारी है 

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