March 23, 2008

तारों कि दास्तान


मुट्ठी भर तारे
कुछ समेटे थे
कि जब बाहर अँधेरा
ज़्यादा हो जाएगा
उन तारों के सहारे
रात गुज़र जायेगी
पर झोली काली थी
खा गयी सारे तारे
और बाहर से ज़्यादा
अन्दर हो चला अँधेरा
अब खोजता है मन
थोड़े से सपने कहीं
जो बन जाएं तारे
आंखों के उजियारे
और तारों में उकेरूँ
ज़िंदगी कि लकीरें

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