कभी बारिश होती थी
बूँदें कुछ हमारी होती थीं
कहते, सुनते, लड़ते-झगड़ते
हमसे ही आ मिलती थीं
काले बादलों के तले
बारिश गले लगाती थी
हँसते हँसते जाने कैसे
आंखों कि नमी बहा जाती थी
पर अब जाने क्या हुआ है
बूँदें परायी सी लगती हैं
हल्की सी बारिश की चुभन
अब अंगारों सी लगती है
जब से रूठी है बूँदें
हमने चुप्पी का घेरा बना लिया है
अब क्या फायदा भीग कर
हमने छाता खरीद लिया है
(पर दिल तो अब भी करता है
बारिशों में छाता उड़ जाए कहीं
जहाँ हम खो जाया करते थे
बूँदें ले जाएँ फ़िर वहीं
मन में बाँधी हर गिरह को
पानी की धार कुछ यूँ खोल दे
कि चुप्पी से सिले बिंधे लब
मन में सड़ती हर बात बोल दें)
बूँदें कुछ हमारी होती थीं
कहते, सुनते, लड़ते-झगड़ते
हमसे ही आ मिलती थीं
काले बादलों के तले
बारिश गले लगाती थी
हँसते हँसते जाने कैसे
आंखों कि नमी बहा जाती थी
पर अब जाने क्या हुआ है
बूँदें परायी सी लगती हैं
हल्की सी बारिश की चुभन
अब अंगारों सी लगती है
जब से रूठी है बूँदें
हमने चुप्पी का घेरा बना लिया है
अब क्या फायदा भीग कर
हमने छाता खरीद लिया है
(पर दिल तो अब भी करता है
बारिशों में छाता उड़ जाए कहीं
जहाँ हम खो जाया करते थे
बूँदें ले जाएँ फ़िर वहीं
मन में बाँधी हर गिरह को
पानी की धार कुछ यूँ खोल दे
कि चुप्पी से सिले बिंधे लब
मन में सड़ती हर बात बोल दें)
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