कल किसी पुरानी किताब से
हमारा वो सूखा पत्ता मिला
पीपल की छाँव तले हमने
जो चुन चुन सजाये थे
उन हसीं ख्वाबों की राख का
छोटा सा टुकडा मिला
उसी किताब के पिछले पन्ने पे
तुम्हारे नामों का एक चिटठा मिला
दिन भर तुमको सोच सोच
खुद-ब-खुद चलते हाथों का लिखा
जाने कितने दिनों पहले का
ख़ुशी का छोटा बुलबुला मिला
देखा तो अब भी हमारी किताबों के
पन्ने तुमसे ही रंगे होते हैं
याद नहीं कब लिखा था उन्हे
क्या सोच रहा हूँगा उस वक़्त
पर तुमको जब ना सोचूँ
ऐसे लम्हे कम ही होते हैं
कल चरचराते पन्नों के साथ
नामों के निशाँ भी मिट जायेंगे
आज थोड़े हैं और कल शायद
हम तुम्हारे कुछ ना रह जायेंगे
पर सोचते हैं क्या हम कभी
तेरी यादों से दूर जा पाएंगे
inspired by this post and the following lines from the song pahli baar mohabbat from kaminey.
याद है..
पीपल के जिसके घने साए थे
हमने...
गिलहरी के जूठे मटर खाए थे
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