July 9, 2008
sleepy stories
जुगनू रातों में ...जागे तो कब सोते हैं? पूँछ पे लालटेन लिए जुगनू बेचारा.. खोजता फिरता रौशनी जो बस उसके साथ ही है? पर रौशनी को पकड़े तो पकड़े कैसे? बस हल्का सा उजियाला दिखता है, और बाकी सब अँधेरा... और अंधेरे में डर लगता है... अँधेरा डरता होगा क्या? रौशनी से नही, ख़ुद से ही? ...कि जैसे वो अंतहीन है, तो ख़ुद में नही खो जाता होगा? अँधेरा अंधेरे में गुम.. गुमसुम गुमसुम...चुप-चाप रहती है कुछ आंखें.. चुप्पी कि पलकों तले छुप के..कुछ बातें गले लगा के.. लगायी है किसी ने कभी अंधेरे को आग? .. कि आग से अँधेरा भागने कि जगह अंधेरे को ही आग लगा दी जाए...पर अँधेरा नही होगा तो निंदिया रानी कैसे आयेगी?.. निंदिया रानी, करती है मनमानी...आंखों में भरी नींद से आंखों में भरी अनकही बातें गपशप करती हैं..और नींद भी बेशरम सी मन लगा कर बातें सुनने बैठ जाती है.. सारे काम छोड़ कर...फ़िर आँखें नींद को रातों में जुगनू दिखाती हैं...पर अनकही बातों के अंधेरे में नींद को जुगनू कहाँ दिखेंगे..तो कुछ मन कि टिमटिम को ही जुगनू मान आंखों कि नींद खुश हो जाती है और उछल उछल कर आँखों को अन्दर झाँकने को कहती है.. पर आँखें तो बावरी होती हैं..सुनेंगी तो कभी नही... तो बस निंदिया रानी रूठ जाती है.. और फ़िर से आंखें जुगनू देखने लगती हैं..निंदिया के इन्तेज़ार में॥
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1 comment:
i know the gaana of the first line :P
chanda re chanda re...
beautiful.ab so ja.
P.S. word verification asks me "geyarah"...i guess bihari lingo is taking over google too :D
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