October 5, 2008

bah!


साथ बैठें ज़रा देर तो
हाथ थामें रहें
और कुछ ना कहें
कुछ सपने मैं दिखाऊँ
कुछ हम तुम
बुनते रहें
कल की और कल की
बातें सारी ये आँखें
चुपचाप गहें
रात के अंधेरे में
तेरी रौशनी में
खोये रहें हम
कि चाँद भी
कुछ मुस्करा कर
हमसे शरमाये
और फ़िर सुबह
सपनों से जागी आंखें
बस तुम्हे देखा करें

[partly liifted from the title song of fiza]

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