आधा अधूरा, बिखरा सा
अपने टुकडों को समेटता
कहीं किसी पल में अटका
टूटे सपनों को जकडे
खाली हथेली निहारता
हँसी को तरसता
भारी बादल सा
मन तुमको सोचता है
अपने टुकडों को समेटता
कहीं किसी पल में अटका
टूटे सपनों को जकडे
खाली हथेली निहारता
हँसी को तरसता
भारी बादल सा
मन तुमको सोचता है
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