January 21, 2009

good morning


कल सूरज खिड़की से रिसते रिसते
बिस्तर तक आ पहुँचा था
रौशनी के कुछ टुकड़े बिखरे से
अंधेरे कमरे में चमक उठे थे
गुनगुनी सी धूप के शोर से
कल नींद मेरी टूटी थी
कुछ झकझोर कर, कुछ हौले से
सुबह ने दस्तक दी थी
किरणों की गुदगुदी से हँसते
अपने चेहरे को मैंने देखा था
शीशे में उस अजनबी को देख
कुछ अजब सा शायद लगा था
पर सोचो तो सूरज कितना अच्छा है
हंस कर रोज़ गले मिलता है
अन्दर छुपे किसी और इंसान से मिला
बिना कुछ कहे चला जाता है
कल जब फ़िर सूरज आयेगा
मैं भी कुछ हँसी उसे दूँगा
मन में थोड़ा सा सूरज छुपा कर
हर अंधेरे से लड़ लूँगा


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