July 24, 2009

चहास




खुशियाँ तो आती हैं
पर तेरी याद लाती हैं
तुम संग ना बाँट पाऊँ तो
हंसी भी कहाँ भाती है

डबडबायी आँखों से
सूनापन निहारते हैं हम
सब कुछ रहने पर भी
कुछ कहीं लगता है कम

कब से इस इंतज़ार में
कि फिर कब आओगे तुम
बैठे हैं हम यहाँ
खोये खोये गुमसुम

फोन की बातों में
आँखें कहाँ देख पाते हैं
खुश हो हंसो तुम जब
हंसी कहाँ देख पाते हैं

महीना हो चला है
अब दूरी भारी लगती है
तुम्हारी बातों की मिठास बिना
चाय भी फीकी लगती है

बहुत बातें कहनी है
चलो कहीं मिल आयें
चाय कि चुस्कियों पे
कुछ लम्हे काट आयें

कि इन प्यारे लम्हों के
मोती बहुत बटोरे हैं
पर मन कहाँ भरता है
ऐसी चाय के हम चटोरे हैं

[image copyright rests with Crazy. used here without permission :D. this sister tends to give me lots of 'fodder' for thought :P. this poem is for two of my favorite people, the ones explicitly/implicitly mentioned in the pic :)]

4 comments:

रवि रतलामी said...

चाय के तो हम भी चटोरे हैं :)

Sunny said...

Achha to theek hai aa jaayenge Jam... ya tum hi Bangy aa jao. Bol hi dena kya kya bolna hai... sun lenge. Aur mahine se jyaada hi ho chala hai... kya makhau counting kar raha hai! :P

But nice pic :)

Ninja said...

lovely pic. share me the actual link please

naween said...

@raviratlami

same pinch!

@sunny

PHBBT!!

@ninja

there is no link. this is is the pic!