January 31, 2009

तू ही तू ...


कल कुछ बातें की थी
तुमसे, अपने साए से
कल कहते कहते रुक गया था
तुम लगे थे कुछ पराये से
तुमसे कुछ छुपा नहीं
फ़िर जाने ये दीवारें कैसीं
तुमसे जीने की वजहें हैं
पर क्यूँ लगें वो गुनाहों जैसीं
मेरे दिल और इस खंजर में
जाने कैसा ये रिश्ता है
मानो ग़मों का कोई सैलाब
खुशनुमा बादलों में बसता है

कश्मकश से हारा, टूटा
ढूंढूं मैं बारिश को कहीं
तुम मिलोगी तूफानों के उस पार
जाने क्यों मुझको है यकीन

हर किसी को मुकम्मल जहाँ नही मिलता
कभी ज़मीन तो कभी आसमान नही मिलता
चाह कर भी तुम्हे अपना नही जब कह पाता हूँ
सच कहता हूँ अन्दर ही कहीं मर जाता हूँ

[inspired by the song har jagah mein from tuhi mere rab ki tarah hai - the new album of mithoon]

2 comments:

Anwar Qureshi said...

बहुत खुबसुरत ....

naween said...

@anwar

thank you.