सूनी बाहें फैलाये
सूखा दरख्त कहता है
भूरेपन के पीछे
इक हरा रंग बसता है
कुछ यादों पे अपना
बस ना कभी चलता है
जब भी शाम आती है
अकेलेपन का अँधेरा खलता है
सूखा दरख्त कहता है
भूरेपन के पीछे
इक हरा रंग बसता है
कुछ यादों पे अपना
बस ना कभी चलता है
जब भी शाम आती है
अकेलेपन का अँधेरा खलता है
[photo by Basu. this poem is kinda incomplete. i know what will complete it and still it doesn't fit.]
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