June 23, 2008

the awakening


रातों में जगा करते हैं
कुछ अधूरे अधमरे ख्वाब
और जगती हैं
ढेरों अनकही बातें
अंधेरे से अपनों सी
बातें करती हैं
कुछ सिसकती, बिलखती
पथराती आँखें
काली चादर ओढे
समय की रेत
कल के दलदल को
मोड़ देती है राहें
रातों में जागते हैं
कुछ दीवाने लोग
और जगा करती हैं
प्यासी, सूनी बाहें


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