रातों में जगा करते हैं
कुछ अधूरे अधमरे ख्वाब
और जगती हैं
ढेरों अनकही बातें
अंधेरे से अपनों सी
बातें करती हैं
कुछ सिसकती, बिलखती
पथराती आँखें
काली चादर ओढे
समय की रेत
कल के दलदल को
मोड़ देती है राहें
रातों में जागते हैं
कुछ दीवाने लोग
और जगा करती हैं
प्यासी, सूनी बाहें
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