जो कहती थी बातें हजार
उन आँखों में नमी रहती है
कभी घंटों बका करते थे
अब बातों की कमी रहती है...
सपनों का मकाँ न बन सका
सूनी आंखें बस सूनापन निहारें
एक मकाँ अब भी है बन रहा
पर अब बस खड़ी होती हैं दीवारें...
सूनी आंखें बस सूनापन निहारें
एक मकाँ अब भी है बन रहा
पर अब बस खड़ी होती हैं दीवारें...
2 comments:
too good :)
@aj
:)
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