टूटे पंखों के
कतरों को समेटते
कुछ उभर आते हैं
नए से पुराने घाव
पर बावरा मन अब भी
उन तिनकों से कहीं
बुनता ही रहता है
नए से पुराने ख्वाब
हँसते अश्कों से
रोती मुस्कराहटों से
उधेड़बुन से बुन बुन
बस अपनी कही सुन सुन
सतरंगी सपनों से
पर ये बटोरे हैं
कुछ भी हो जाए
पंख ये मेरे हैं
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