राहों में चलूँ तो
कुछ यादों के पत्थर
बिखरे रहते हैं
गलियां मुड़ मुड़ के
जाने कुछ साजिश करके
उस मोड़ पे पहुंचती हैं
आखिरी मुलाकात के पल
जहाँ याद आते हैं
हवाओं में कुछ लम्हे
घुले खुशबू से
बीते कल के रहते हैं
इक उजड़ी सी मुस्कान के साथ
कुछ दमघोंटू आंसू
तेरी बातों के चंद
टूटे शब्द बटोरे
चले ही आते हैं
सूरज की ढलती किरणों से
रोशन तेरा वो चेहरा
उन सीढियों पे बैठे
तेरे चेहरे को एकटक
यूं देखना की बस
सूनी रातों में याद रहे
कुछ मंज़र हैं की
भुलाए नहीं भूलते हैं
वजहों की गिनती कहाँ
इसका होना भी इक वजह है
शुरुआतों की बुनियादों पे यहाँ
अन्तिम घड़ियों का मकाँ है
सपनों के जहाँ की जगह
वीरानियों का शमशान है
इस शहर में अब
जीना कहाँ आसान है
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