June 14, 2008

इक शहर अनजाना सा

राहों में चलूँ तो
कुछ यादों के पत्थर
बिखरे रहते हैं
गलियां मुड़ मुड़ के
जाने कुछ साजिश करके
उस मोड़ पे पहुंचती हैं
आखिरी मुलाकात के पल
जहाँ याद आते हैं

हवाओं में कुछ लम्हे
घुले खुशबू से
बीते कल के रहते हैं
इक उजड़ी सी मुस्कान के साथ
कुछ दमघोंटू आंसू
तेरी बातों के चंद
टूटे शब्द बटोरे
चले ही आते हैं

सूरज की ढलती किरणों से
रोशन तेरा वो चेहरा
उन सीढियों पे बैठे
तेरे चेहरे को एकटक
यूं देखना की बस
सूनी रातों में याद रहे
कुछ मंज़र हैं की
भुलाए नहीं भूलते हैं

वजहों की गिनती कहाँ
इसका होना भी इक वजह है
शुरुआतों की बुनियादों पे यहाँ
अन्तिम घड़ियों का मकाँ है
सपनों के जहाँ की जगह
वीरानियों का शमशान है
इस शहर में अब
जीना कहाँ आसान है

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