उसे प्यार करते
हर वक़्त एक ख्याल
दिमाग के किसी कोने में
चुभता रहता था
क्या यही
किताबों वाला प्यार
होता होगा?
हर मुलाक़ात को
इक छपी-छपाई तस्वीर के
रंगों से तोलते मोलते
हर बात को
कहीं पढ़े कुछ शब्दों के
आगे रख पढ़ते
एक दौड़ सी हो गयी थी
किताबों की उकेरी
रंगीन तस्वीरों
और
उसके साथ बाटीं
धूसर शामों
के बीच
किताबों वाला प्यार
बड़ा सुहाना लगता था
उसका प्यार प्यारा था पर
बड़ा फीका लगता था
फिर एक दिन उसने
मुझे पकड़ बिठाया
आँखों में आँखें डाल
हाथों में कुछ थमाया
कुछ भारी सा था
पढने में हल्का सा
अब तक अनजाने
रंगों से रंगा
हर शब्द तितली के
रंगों से सजा
वो अब तक हमारे
संग गुज़ारे सारे
लम्हों का चिट्ठा था
हम ढूंढते रहे
किताबों वाला प्यार
और यहाँ हमारे
प्यार की किताब
बन गयी थी
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2 comments:
Bohat khoobsoorat.
Main intezaar me thi, ek aise koi post ka :)
@P:
Iske pahle ke 5-6 posts bhi aise hi hain :P
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