December 5, 2009

wide-eyed



अजनबी आंखों में
कोई अपना सा दिखा था
मेरे सपनों का शहर
कहीं और भी दिखा था

घूरती आंखों की भीड़ में
कुछ अपनापन मिला था
कुछ जाना पहचाना सा
रेगिस्तान में ठिकाना मिला था

पर कुछ कह पाती मेरी आँखें
इस से पहले वो आँखें मुड़ गईं
मैंने तो सुनहरा सफर देखा
पर राहें कहीं और मुड़ गईं

कुछ देर ठहरा रहा मैं वहीँ
मन में कुछ सोचता रहा
घूरती आंखों की भीड़ में
वो प्यारी आँखें खोजता रहा

फ़िर एक भूली बिसरी याद
कुछ कंपा कर चली गई
जिनसे मिला था अभी मैं
वो आँखें देखीं थी मैंने पहले भी

पर इस अजनबी भीड़ में
अब वो भी अजनबी ही हैं
भीड़ वाली आंखों की तरह
वो भी बस घूरती ही हैं

तुम्हारी आंखों में कभी
मैंने ख़ुद को देखा था
जोड़ कुछ कच्चे धागे सोचा
अब अजनबी नही रहे
तुम से ख़ुद के मायने
ढूंढता मैं रह गया यहीं
अब जो तुम यहाँ नही
मैं भी मैं नही
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inspired by this poem [which is much better than this one]. and the title song of socha na tha. photo by basu. i had named it 'look in my eyes'. hence its appearance in this post. ]

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