March 3, 2011

reality bites


बड़ी शिद्दत से हमने कभी
की थी उजालों की ख्वाइश
सोचा था होगा हमारा सवेरा
और किरणों की बारिश
पर शामों में सारे
अरमान धुल से गए
अँधेरे में हम कहीं एक
परछाईं बने रह गए

2 comments:

Anonymous said...

Great poem man vEry nice ....

naween said...

@anon: thanks!