तपती दीवारों के काँधे पर
सर रख कर रोते हैं हम
इस आशियाने के मरघट में
रात अकेले होते हैं हम
घर आने से रोज़ डरते हैं
नुक्कड़ पर रुक सा जाते हैं
जिस दिन से तुम गए हो, हम
अपने घर में पराये से रहते हैं
सर रख कर रोते हैं हम
इस आशियाने के मरघट में
रात अकेले होते हैं हम
घर आने से रोज़ डरते हैं
नुक्कड़ पर रुक सा जाते हैं
जिस दिन से तुम गए हो, हम
अपने घर में पराये से रहते हैं
4 comments:
Awwwww so sad :( par itna hi devdas bana tha to Jane kyo diya ;)
@anon: yahi to nahi pata..
Excellent piece.
@chintan: Thankoo :)
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