March 12, 2011

house vs home


तपती दीवारों के काँधे पर
सर रख कर रोते हैं हम
इस आशियाने के मरघट में
रात अकेले होते हैं हम
घर आने से रोज़ डरते हैं
नुक्कड़ पर रुक सा जाते हैं
जिस दिन से तुम गए हो, हम
अपने घर में पराये से रहते हैं

4 comments:

Anonymous said...

Awwwww so sad :( par itna hi devdas bana tha to Jane kyo diya ;)

naween said...

@anon: yahi to nahi pata..

Chintan said...

Excellent piece.

naween said...

@chintan: Thankoo :)