कुछ खाली सा लगा मन
तो बरस गईं आँखें
कुछ भर सा आया है मन
पर भरती कहाँ चाहें
आंसू भी अब शायद
कहीं थक से गए होंगे
ठहरे से कुछ किस्से
कहीं गुम से गए होंगे
सिराहने पड़ा पत्ता भी अब
कुछ सूखा सा लगता है
टूटे शाखों का दरख्त
अधमरा सा लगता है
तुम गए तो अब न आना
कि अब मौसम सब नए हैं
तुम पहचान भी न पाओगे
हम इतने बदल गए हैं
घर के बाहर वाले पेड़ की
शाखें सूख सी गई हैं
घर तो अब नही रहा
दीवारें रह गई हैं
आज खाली सा है मन
पर तुम मत आना
मैं नही चाहता तुमसे
मिले कोई अनजाना