November 30, 2008

barren


कुछ खाली सा लगा मन
तो बरस गईं आँखें
कुछ भर सा आया है मन
पर भरती कहाँ चाहें

आंसू भी अब शायद
कहीं थक से गए होंगे
ठहरे से कुछ किस्से
कहीं गुम से गए होंगे

सिराहने पड़ा पत्ता भी अब
कुछ सूखा सा लगता है
टूटे शाखों का दरख्त
अधमरा सा लगता है

तुम गए तो अब आना
कि अब मौसम सब नए हैं
तुम पहचान भी पाओगे
हम इतने बदल गए हैं

घर के बाहर वाले पेड़ की
शाखें सूख सी गई हैं
घर तो अब नही रहा
दीवारें रह गई हैं

आज खाली सा है मन
पर तुम मत आना
मैं नही चाहता तुमसे
मिले कोई अनजाना