July 14, 2009

हाथ फैलाये


वक्त की रेत में..
धंस कर देखा है..
कितने अनजानों के संग..
हंस कर देखा है..
चलते चलते पैरों के..
तलवे घिस गए हैं..
इंतज़ार है उस दिन का..
जब कह सकें मुस्करा के..
हाँ, हमने भी कभी..
कहीं कोई अपना देखा है

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