August 18, 2009

amnesia


ख़ुद से बातें कर हम
आंसू बहा रहे थे
धुंधली पडी यादों से
कहानियाँ बना रहे थे
अरसा गुज़र गया
बातें हैं बड़ी पुरानी
जाने क्या सच है
जाने क्या कहानी
पर फ़िर लगा
जाने क्यूँ रो रहे हैं
किसकी बातों को ले
इतने जस्बाती हो रहे हैं
धुंधलेपन की स्याही
हर तस्वीर रंग चुकी है
आँखों के अंगारों में
कुछ बातें फुंक चुकी हैं

सोचा तो फ़िर हंस दिए
की ये भी खूब रही
जिस चेहरे को रोते हैं
वो चेहरा ही याद नही


No comments: