June 14, 2008

कुछ सागर की कही


भीगी आंखों से छलकी
कुछ खारी बूंदों में
मीठी हंसी कहीं
डूब सी गयी है

मन के खारे सागर की
कुछ खट्टी लहरों से
सपनों के कुछ घरौंदे
टूट कर बह गए हैं

बची है तो अब बस
हाथ से फिसलती रेत
और अधजली आशाओं का
घुटन भरा सूनापन

सागर सा बड़ा मन
सागर सा खाली है
सागर सा खारा मन
सागर सा भारी है

[
written after a prolonged session of staring-at-the-sea]

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