November 10, 2009

miscommunication


उसे घेर बैठे
तकते रहे रात भर
सुबह मुंह लटकाए
चले गए अपने घर
चाँद ने सोचा उन्हे
कहने की ज़रूरत नही
तारे सोचते रहे उसने
कुछ कहा क्यों नही

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अनकही बातों का
सूनापन लादे
चलने का दर्द
सहा नही जाता
कहते हैं
कह देने से
ना कह पाने का
गम नही सताता

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1 comment:

Kavs said...

very nice - the simplicity of your poems!