उसे घेर बैठे
तकते रहे रात भर
सुबह मुंह लटकाए
चले गए अपने घर
चाँद ने सोचा उन्हे
कहने की ज़रूरत नही
तारे सोचते रहे उसने
कुछ कहा क्यों नही
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अनकही बातों का
सूनापन लादे
चलने का दर्द
सहा नही जाता
कहते हैं
कह देने से
ना कह पाने का
गम नही सताता
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1 comment:
very nice - the simplicity of your poems!
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