March 10, 2008

भा गयी कहानी..

भरम में लिपटी
भूरे सपनों की चिंगारियां
भोली सी भोर में कहीं
भर भर मोती छलका
भंवें चढ़ा जाती हैं
भला हो पर इनका
भीतर कहीं आग
भड़का कर जगा जाती हैं
भागें सही इंसान तभी
भूत सवार हो जब मन पे कोई
भोर से भोर तक का
भूरेपन से भूरेपन तक का
भरा सफर काटना है
भर मुट्ठी में कुछ चिंगारियां
भीतर आग लिए
भरम को नापना है

1 comment:

sandeip said...

ye kavita "bha" se bhari hui hai ya mera bharam hai? :P