September 9, 2009

hmm...


कभी मिलोगे रास्ते में कहीं
तो अनजान बन निकल जाओगे
और हम यहाँ आस लगाये बैठे हैं
कि जाने फ़िर तुम कब आओगे

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हम तुम्हारी कुछ यादें बटोर रहे थे
कि कभी इत्मीनान से खुश होंगे
पर क्या पता था कि थैली में हमारे
बदकिस्मती के अनगिनत छेद होंगे

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