जुगनुओं की भीड़ में कहीं
गुम हो गया है मेरा अँधेरा
चकाचौंध से थकी आँखें
ढूंढें कोई निर्जन बसेरा
रौशनी का शोर है यहाँ
सहमी सी है परछाईं मेरी
अँधेरी तू आ जा कहीं से
छुपा ले बाहों में तेरी
मेरी बातें इस शोर में
कहीं गुम हो जाती हैं
ना कह सकूं बातें तो
तेरी याद बड़ी आती है
जुगनू तो बस यही चाहें
आँखें मैं खोल लूं
और मैं चाहूँ पलकें मूँद
कुछ तुझसे बोल लूं
मैं बैठा हूँ यहीं
कब वो चले जायेंगे
तब तुम चुपके से आना
फिर सुन्दर सपने आएंगे
बस एक मेरा वाला
जुगनू रह जाये पीछे
आंखें अँधेरी स्लेट पे
जुगनू की लकीरें खींचें
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जुगनू पर इतने भी बुरे नही होते। इसलिए संक्षेप में:
जुगनू प्यारा कभी कभी
तंग कर देता है
मैं आँखें मींचूं कि
उजाला कर देता है
अब कौन उसे समझाए
कभी अच्छे भी होते हैं साए
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the image is of 'Fireflies on Water' - by Yayoi Kasuma (b. 1929), a 2002 installation that measures 115 by 144 by 144 inches and consists of mirrored walls, 150 lights and water. more details and pics here.
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