काली चादर से ढक उसे
रात भर धुनते हैं तारे
तभी सूरज लाल आंखों से
सुबह दुखते पाँव पसारे
पिटाई की सोच ही वो
इतना घबरा जाता है
शाम होती नही कि उसका
रंग फ़िर धूमिल हो जाता है
रात भर धुनते हैं तारे
तभी सूरज लाल आंखों से
सुबह दुखते पाँव पसारे
पिटाई की सोच ही वो
इतना घबरा जाता है
शाम होती नही कि उसका
रंग फ़िर धूमिल हो जाता है
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