August 4, 2007

दिन की कहानी


जल- जल के सूरज
ढूंढें इक बादल की छांव
जलता है कि तारों को देखे
मरता है सपनों के लिए

बुद्धू है बेचारा
जग कर फिर मरता है
पर सपने तो ऐसे ही होते हैं
टुकड़ों में भी अच्छे होते हैं

हर सपना संजोती आंखें
रोती हैं, पर पथराती नहीं
दूर किसी तारे की चमक
आंखों से जाती नहीं


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