आसमान के आंगन में
बादलों की गोद में
चिरौरी करती है
कभी उछल इधर
कभी उधर कूदती है
मेरी पतंग तो बस
हवा से बातें करती है
डोर का कुछ होश नहीं
कौन बांधे उसे
उसपर तो कोई बस नहीं
हंसती गाती उड़ती है
कुछ अपने गीत
कुछ मेरे सुनाती है
मेरी पतंग तो बस
हवा से बातें करती है
सूरज चन्दा के किस्से
मुझे ढेरों सुनाती है
कभी डोर को खींच
मुझे चिढ़ाया करती है
पर कभी कभी अचानक
बहुत दूर लगती है
कोसों दूर कहीं
आंखों से ओझल लगती है
मेरी पतंग तो बस
हवा से बातें करती है
उसकी आंखों से कहीं
मैं भी सपने देख रहा हूँ
उसकी ख़ुशी में कहीं
मैं भी खुश हो रहा हूँ
पतंग ओ पतंग मेरी
बस उड़ती रहना रे !!
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